कथा कुछ यूँ है की वेद व्यास जी ने जब महाभारत लिखने की सोची तो उन्हें एक अच्छे लेखक की जरूरत पडी, तो उन्होने गणेशजी से अनुरोध किया| गणेशजी ने व्यासजी के समक्ष एक शर्त रखी की व्यासजी निरंतर लिखाते रहें, यदि वे थम गये तो गणेशजी आगे नहीं लिखेंगे| व्यासजी के सामने यह एक सम्सया बन गयी| तब व्यासजी ने भी एक शर्त रखी की गणेशजी तभी लिखेंगे जब उन्हें श्लोक का अर्थ समझ में आयेगा| इसलिये कहा जाता है की हर 1000 एक श्लोकों के बाद कुछ श्लोकों का अर्थ अत्यंत ही गूढ होता है| शायद उस समय व्यासजी अपनी नित्यक्रिया निबटाते थे|
ठीक इसी तरह मेरी कंपनी के शिक्षक विध्यार्थीओं को "श्लोक" (assignment) देकर कक्षा से बाहर आतें है और अपने अन्य काम निबटाते हैं :)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें