जब से मैंने हिन्दी चिट्ठाकारी शुरू की है, कई मित्रों का कहना यह है की चिट्ठों का स्तर बहुत ऊँचा है (हालांकी मेरा मानना यह है की 20 साल के अंग्रेज़ी माहौल के बाद मेरी हिन्दी का स्तर गिर गया है) | मुझे मेरे ऐक दोस्त का चुटकुला याद आता है:
हिन्दी की परीक्षा देकर विद्यार्थी कक्षा से निकला और अपनी साईकल निकाली तो पता चला की पहियें में हवा नहीं है| वह अपनी साइकल घसीटता हुआ पञ्चर की दुकान पे पहुचा| उसने टेमरू ( इंदौरी शब्द - पञ्चर की दुकान पर बैटने वाले बालकों के लिये) से शुद्ध हिन्दी में कहा - "हे पवनठूसर, मेरी मानवचालित द्विचक्री वाहनी के द्वितीय चक्र में से पवन का पलायन हो चुका है, अतः आप से करबद्ध होकर निवेदन है की आप अपने पवनठूसक यंत्र से तनिक पवन का प्रवेश करायें|"
टेमरू ने जवाब दिया - "हट्टे कट्टे होके भीख मांगते हो, शर्म नहीं आती है|"
इसका श्रेय जाता है अक्षय को जो मेरे कॉलेज का मित्र था|
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