शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2004

पुनः प्यासा

अर्ज किया है....

ये डॉक्यूमेंट, ये मीटींग, ये फीचर्स की दुनिया..
ये इन्सान के दुश्मन लम्बे घंटों की दुनिया..
ये डेडलाईन के भूखे मैनेजमेन्ट की दुनिया..
ये प्रोडक्ट अगर बन भी जाए तो क्या है....
ये प्रोडक्ट अगर बन भी जाए तो क्या है|

यहाँ पर खिलौना है प्रोग्रामर की हस्ती..
यहाँ बसती है फटीचर बग-फिक्सर की बस्ती..
यहाँ पर रेज़ज़ है इनफ्लेशन से सस्ती..
ये रिव्यूह अगर हो भी जाये तो क्या है..
ये रिव्यूह अगर हो भी जाये तो क्या है|

हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी..
दिमागों में उलझन, दिलों में उदासी..
ये ऑफिस है या आलम बदहवासी..
ये वर्झ़न अगर शिप हो जाये तो क्या है..
ये वर्झ़न अगर शिप हो जाये तो क्या है|

यहाँ हर चीज़ पैसे से है तोली जाती..
ये ऐसा बाज़ार है जहाँ हर चीज़ है बिकती..
ईमान का ना तो मौल है ना धर्म की हस्ती..
ये पैसा अगर मिल भी जाये तो क्या है..
ये पैसा अगर मिल भी जाये तो क्या है|

जला दो इसे फूँक डालो ये डॉक्यूमेन्ट..
जला दो... जला दो, फूँक डालो ये डॉक्यूमेन्ट..
मेरे सामने से हटा दो ये कमिट्मेन्ट..
तुम्हारा हैं तुम्ही सम्भालो ये डिपार्टमेन्ट..
ये गोली अगर चल भी जाये तो क्या है|

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